Monday, September 21, 2009

“वक्त नहीं”


हर खुशी है लोगों के दामन में
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं
दिन रात दौडती दुनिया में
जिन्दगी के लिए ही वक्त नहीं

माँ की लोरी का अहसास तो हैं
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं
सारे रिश्तो को तो हम मार चुके
अब उन्हे दफनाने का भी वक्त नही.

सारे नाम मोबाईल में है
पर दोस्ती के लिए वक्त नही
गैरों की क्या बात करे
जब अपनो के लिए ही वक्त नही

आँखो में है नींद बडी
पर सोने का वक्त नहीं
दिल है गमो से भरा
पर रोने का भी वक्त नहीं

पैसों की दौड में ऎसे दौडे
कि थकने का भी वक्त नही
पराये अहसासो की क्या कद्र करे
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नहीं

तू ही बता ऎ जिन्दगी
इस जिन्दगी का क्या होगा
कि हर पल मरने वालो को
जीने के लिए भी वक्त नहीं

कवि : अज्ञात

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