Thursday, July 23, 2009

How to Stop Smoking and get a Healthy, Happy and confident life in return!


Want to quit smoking? Many times tried and failed? Some where find it difficult and think that you are lacking will power?


IF YES, There is a good news, now you can Quit Smoking very easily!

You will not only able to quit smoking but get a better self image, a better confidence of having better self control too!


This Ebook is written on the principals based on how human mind works and Emotional Intelligence.


Tuesday, July 14, 2009

भावनात्मक बुद्धिमानी क्यों जरुरी हैं?

संजय ऑफिस से घर लौटकर आया और बेटे से पानी लाने को कहा। बेटा टीवी देखने में मशगूल था, उसने अनसुना कर दिया। इस पर संजय अपना आपा खो बैठा और पास पड़े डंडे से उसने बेटे की बुरी तरह पिटाई कर डाली। कारण बड़ा सामान्य था। संजय का दिन काफी परेशानी भरा बीता था। वह अपना प्रोजेक्ट समय पर नहीं कर पाया और उसे अपने बॉस से काफी कुछ सुनना पड़ा था। इसी का गुस्सा उसने बेटे पर निकाला।

आए दिन हम अपने घरों में, अड़ोस-पड़ोस में, रास्ते में, ऑफिस में देखते हैं कि लोग छोटी-छोटी बातों पर अपना आपा खो देते हैं। मम्मियाँ बच्चों पर झुंझलाती हैं, मियाँ-बीवी छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं, यहाँ तक कि तलाक ले लेते हैं। किशोरवय के बच्चे हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कर रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर वाहन चालक सड़क पर हाथापाई कर रहे हैं। यह सूची अनंत है, पर इस सबके पीछे कारण एक है- भावनात्मक समझदारी, जिसे इंग्लिश में इमोशनल इंटेलीजेंस कहते हैं, का अभाव या कमी।

भावनाएँ हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न अंग हैं। हमारे दिमाग के दो मुख्य हिस्से हैं- एक जो तार्किक है, जो हर चीज को तर्क के हिसाब से ही देखता है और दूसरा भावनात्मक, जिसका तर्क से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है। कहते हैं हमारा भावनात्मक दिमाग, तार्किक दिमाग से यही कोई दस करोड़ साल पुराना है।

दिमाग का मुख्य भाग "ब्रेन स्टेम", जो रीढ़ की हड्डी के ऊपरी भाग को घेरे रहता है, सामान्यतः सभी प्राणियों में पाया जाता है। साँस लेना और पाचन तंत्र जैसे स्वचलित लगने वाले काम दिमाग के इसी भाग के कारण होते हैं। दिमाग का यह हिस्सा न तो सोच सकता है और न ही सीख सकता है, पर यह जीवन चलाने वाले सारे स्वचलित कामों को अंजाम देता है।

इसी मुख्य दिमाग के एक भाग, "ओलफैक्ट्री लोब" जो कि सुगंध से जुड़ा है, से हमारे भावनात्मक दिमाग का उद्भव हुआ। शुरुआती दिनों में यह "ओलफैक्ट्री लोब" ही गंध को याद रखती थी और बताती थी कि सामने जिससे वास्ता पड़ा है वह दुश्मन है, भोजन है या प्रेयसी है और प्रतिक्रिया तय करती थी कि खाना है, आगे बढ़ना है या जान बचाने के लिए भागना है। "ओलफैक्ट्री लोब" के विकास से बना हमारा भावनात्मक दिमाग "लिम्बिक सिस्टम" कहलाता है। विकास के करोड़ों वर्षों के दौरान हमारा तार्किक दिमाग, जो "नियो कोर्टेक्स" कहलाता है, अस्तित्व में आया।

दिमाग के दो और मुख्य अवयव होते हैं- "अमिगडला" और "थेलामस"। "अमिगडला" बड़े ही कमाल की चीज है। हमारी भावनात्मक समझदारी का बहुत कुछ दारोमदार इसी पर होता है, वहीं "थेलामस" छोटे-मोटे कम्युनिकेशन सेंटर की तरह काम करता है। जो कुछ हम इंद्रियों द्वारा महसूस करते हैं, वह हमारे दिमाग में "थेलामस" के जरिए ही पहुँचता है।

"अमिगडला" बादाम के आकार का होता है और यह भावनात्मक दिमाग के ड्राइवर की तरह होता है। यह सूचनाओं के भावनात्मक पहलुओं को याद रखता है। जो भावनाएँ हम महसूस करते हैं और उन पर जो प्रतिक्रिया देते हैं, वह सब कुछ "अमिगडला" के कारण ही होता है।

"अमिगडला" का सूचनाओं को परखने का तरीका जुदा होता है, वह हर सूचना को पहले से संकलित भावनात्मक सूचनाओं से तुलना कर, किसी परेशानी की संभावना को परखता है। वह देखता है कि आई हुई सूचना कुछ ऐसी तो नहीं है जिससे वह घृणा करता है या जो नुकसान पहुँचा सकती है या जिससे भय है। अगर कहीं भी उसे ऐसी किसी भी आशंका का अहसास हुआ तो वह तुरंत संकट का अलार्म बजा देता है और पूरा शरीर उसी हिसाब से सकंट के खिलाफ उत्तेजित हो, संकट से सामना करने के लिए तैयार हो जाता है।

अभी तक विशेषज्ञों का यह मानना था कि जो कुछ हम इंद्रियों के द्वारा महसूस करते हैं वह पहले "थेलामस" में जाता है और वहाँ से हमारे तार्किक दिमाग "नियो कोर्टेक्स" में, जहाँ सूचनाएँ इकट्ठा होकर पूर्ण आकार लेती हैं, उन्हें समझा जाता है और तब यह संवर्द्धित सूचना हमारे भावनात्मक दिमाग "लिम्बिक सिस्टम" में जाती है जहाँ उसका भावनात्मक विश्लेषण होता है और उसके अनुसार शरीर को आवश्यक निर्देश जारी होते हैं। एक विशेषज्ञ "ली डॉक्स" ने अपने अनुसंधान में पाया कि "थेलामस" से "लिम्बिक सिस्टम" के मध्य जो संचार तंत्र हमारे तार्किक दिमाग "नियो कोर्टेक्स" से होकर जा रहा है, उसके अलावा एक और अपेक्षाकृत कम जटिल और छोटा संचार तंत्र सीधा "थेलामस" से "अमिगडला" तक आ रहा है। यह छोटा संचार तंत्र पूर्ण सूचना तो "अमिगडला" तक नहीं पहुँचा पाता वरन आंशिक या अधूरी सूचना ही पहुँचा पाता है। यह अपेक्षाकृत छोटा संचार तंत्र तब काफी उपयोगी था, जब आदमी जंगल में रहता था और उसे क्षणमात्र में किसी भी खतरे से निपटना होता था।

आज के हालात में जब मनुष्य एक सामाजिक प्राणी बन चुका है और उसे जंगल की तरह के खतरों का सामना नहीं करना पड़ता है, इस तरह की अधूरी सूचना पर काम करने वाला संचार तंत्र काफी खतरनाक हो सकता है।

जैसा कि हमने देखा कि "अमिगडला" हर सूचना का विश्लेषण संभावित खतरे को आँकने के हिसाब से करता है, ऐसी कोई भी अधूरी सूचना जो खतरा लगे, उसे आक्रामक बना सकती है और परिणाम भयंकर एवं कष्टप्रद हो सकते हैं। हम स्वयं इस बात के गवाह हैं जब हम या हमारे आसपास के लोग क्षणिक आवेश में ऐसे कार्य कर बैठते हैं, जिन पर बाद में पछताना पड़ता है।

जिंदगी में सुकून, शांति से रहने और सफल होने के लिए जरूरी है कि हम उपयुक्त निर्णय ले सकें और इसके लिए जरूरी है कि हम इमोशनल इंटेलीजेंट या भावनात्मक बुद्धिमान बनें। इस तरह की बुद्धिमानी हमें सक्षम बनाती है कि हम आवेश में आकर कार्य करने की बजाय शांतचित होकर काम कर पाएँ और जिंदगी में सफलता व खुशी सुनिश्चित कर पाएँ।



(अमित भटनागर अमोघ फाउंडेशन के सीइओ व इमोशनल इंटेलिजेंस के कोच हैं
ईमेल : amitbhatnagar@amoghfoundation.org
वेबसाइट : www. amoghfoundation.org)